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महान व्यक्तित्व >> सम्राट अशोक

सम्राट अशोक

प्राणनाथ वानप्रस्थी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :46
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1492
आईएसबीएन :81-7483-033-2

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प्रस्तुत है सम्राट अशोक का जीवन परिचय...

कलिंग-विजय

 

यह एक छोटा-सा राज्य था। यह राज्य गोदावरी और महानदी नदियों के बीच में बंगाल की  खाड़ी के निकट था। इस राज्य के तीन ओर मौर्य-साम्राज्य की सीमाएं थीं और चौथी ओर  सागर ठाठें मार रहा था। यहां के लोग बड़े वीर और सदा सच बोलने वाले थे। यह भूमि बड़ी उपजाऊ थी। यहां का व्यापार बड़ी दूर तक फैला हुआ था। यहां का कपड़ा बहुत बढ़िया होता था। बारीक से बारीक कपड़ा, जैसे ढाके की मलमल, यहां का प्रसिद्ध था। यहां के भूरे रंग के  हाथी भी बहुत प्रसिद्ध थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य के पहले यह राज्य नन्दवंश के अधीन था। नन्दवंश की जड़ें उखाड़कर ही चन्द्रगुप्त राजा बना था। उसी समय में कलिंग स्वतन्त्र हो गया था। इसने थोड़े समय में ही दिन दुगुनी और रात चौगुनी उन्नति कर ली। चन्द्रगुप्त के सामने ही यह राज्य बहुत ही शक्तिशाली हो गया था। सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस को हराने वाला वीर चन्द्रगुप्त इस ओर आंख-भर  देखने का साहस नहीं कर सका। इसके पुत्र बिन्दुसार ने इस राज्य को तीन ओर से घेर लिया था, परन्तु इस पर विजय नहीं पा सका।

कलिंग-राज्य की सेना भी कोई कम न थी। यूनानी राजदूत मेगस्थनीज लिखता है कि  कलिंग-राज्य की अंगरक्षक सेना में 60,000 पैदल, 10,000 घुड़सवार और 600 हाथी थे।  इससे आप समझ लीजिए कि उसकी सेना कितनी बड़ी होगी। अशोक के समय तक इस देश ने और भी अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा ली होगी।

यह छोटा-सा राज्य विशाल मौर्य साम्राज्य के सामने सिर उठाए खड़ा हुआ था। इसका स्वतन्त्र रहना अशोक को खटकने लगा। उसने सोचा कि यदि इस राज्य को अधीन न किया गया, तो इस राज्य के लोग कहीं विदेशी राजाओं के साथ मिलकर मौर्य साम्राज्य के लिए खतरा न बन जाएं, इसलिए इस खतरे को बड़े-से-बड़ा मूल्य देकर भी मिटाना होगा।

राजगद्दी पर बैठने के आठ वर्ष बाद सम्राट् अशोक ने अपनी महान् सेना को लेकर इस राज्य को चारों ओर से घेर लिया। तीन ओर तो इसका राज्य था ही, चौथी ओर से उसके समुद्री बेड़े ने इस छोटे-से राज्य का घेरा पूरा कर लिया।

अब सम्राट् अशोक ने अपना दूत कलिंगराज के पास भेजा और कहा, ''अब भी चाहो तो युद्ध  रुक सकता है। नहीं तो लाखों लोगों का रक्त बह जाएगा। हम तुम्हारे राज्य पर शासन करने के लिए नहीं आए। हम तो केवल मित्रता का हाथ चाहते हैं।''

जब दूत कलिंगराज की राजधानी तोसाली में पहुंचा, तो राजा ने उसी समय दरबार लगाया। मन्त्रियों से और राज्य के बड़े-बड़े लोगों से राय ली गई।

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    अनुक्रम

  1. जन्म और बचपन
  2. तक्षशिला का विद्रोह
  3. अशोक सम्राट् बने
  4. कलिंग विजय
  5. धर्म प्रचार
  6. सेवा और परोपकार
  7. अशोक चक्र

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